स्वच्छता ही सेवा
सुभाष चन्द्र नौटियाल
भारतीय संस्कृति में तन, मन तथा स्थान की शुद्धिकरण पर जोर दिया गया है। ऐसा माना जाता है स्वच्छ तन-मन में ही ईश्वरीय भाव जाग्रत होता है तथा भावों में ही भगवान बसते हैं। शुद्ध विचारों का प्रवाह भी स्वच्छता से ही सम्भव है। आचार-विचार तथा व्यवहार की शुद्धता के लिए स्वच्छता अनिवार्य एवं पहली शर्त है। व्यक्ति के विचार शुद्ध होगें तो निश्चित ही कार्यों भी स्वच्छता की चमक दिखाई देगी।
यही कारण है कि, इस संस्कृति में घर हो चाहे कार्यस्थल या मन्दिर किसी भी स्थान पर कार्य या पूजा को सम्पन्न करवाने से पूर्व मन में स्वच्छता का भाव जाग्रत करने के लिए स्वयं तथा स्थान का शुद्धिकरण किया जाता है। शुद्धिकरण का अभिप्राय स्वच्छता से ही है। सनातनी संस्कृति में स्वच्छता को ईश्वरीय सेवा के रूप में स्वीकार किया गया है। किसी भी अनुष्ठान को सम्पन्न करने से पूर्व स्वच्छता आवश्यक है। बिना स्वच्छता के कार्य पूर्ण नहीं हो सकता।
किसी भी अनुष्ठान से पूर्व स्थान शुद्धिकरण के लिए जल छिड़काव कर निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है –
*“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः“*
इस मंत्र का भाव यही है कि, जीवन में स्वच्छता का सबसे अधिक महत्व है। बिना स्वच्छता के कोई भी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। यही कारण है कि, राष्ट्र पिता गांधीजी ने स्वच्छता को स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण माना, उनका मानना था ’ *यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है, तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता है। और यदि वह स्वस्थ नहीं है, तो वह स्वस्थ मनोदशा के साथ नहीं रह पाएगा। स्वस्थ मनोदशा से ही स्वस्थ चरित्र का विकास होगा। देश की स्वच्छता स्वतंत्रता से भी अधिक महत्वपूर्ण है।’* गांधीजी के इन्हीं विचारों से आत्मसात् करते हुए देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के 68 वें स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 2014 को राष्ट्र के नाम सम्बोधन में लालकिले की प्राचीर से स्वच्छता को राष्ट्रीय मिशन बनाने तथा जनसहभागिता से इसे प्राप्त करने का आवाहन किया। देश में स्वच्छता का संदेश घर-घर तक पहुंचाने के लिए गांधीजी की जंयती 2 अक्टूबर 2014 से स्वच्छ भारत मिशन की विधिवत् शुरुआत की गयी। स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य केवल आसपास की सफाई करने तक सीमित नहीं है अपितु नागरिकों की सहभागिता से अधिक-से अधिक पेड़ लगाना, कचरा मुक्त वातावरण बनाना, शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराकर एक स्वच्छ भारत का निर्माण करना है। देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ भारत का निर्माण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गंदगी के कारण भारत की तस्वीरें भारतीयों के लिए अक्सर शर्मिंदगी की वजह बन जाती हैं, खासकर तब जब कोई विदेशी हमारे देश में आता है या देश की तस्वीरें विदेशों में प्रदर्शित की जाती हैं। इसलिए स्वच्छ भारत के निर्माण एवं देश की छवि सुधारने में स्वच्छता मिशन में देश के प्रत्येक नागरिक की भागीदारी आवश्यक है। यह अभियान न केवल नागरिकों को स्वच्छता संबंधी आदतें अपनाने बल्कि हमारे देश की छवि स्वच्छता के लिए तत्परता से काम कर रहे देश के रूप में बनाने में भी मदद करेगा।
स्वच्छता अभियान से हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड में कचरा प्रबंधन के लिए जरूरी सुविधाओं का विकास करने के साथ ही स्वच्छता को लेकर आम लोगों को जागरूकता आयी है। राज्य सरकार स्वच्छता अभियान के तहत् तेजी से आगे बढ़ रही है। उत्तराखंड 2017 में देश का चैथा ओडीएफ राज्य बन गया था। राज्य में अभी तक करीब 5 लाख 37 हजार से अधिक शौचालय विहीन परिवारों के लिए शौचालयों का निर्माण किया गया है। साथ ही 2600 से भी अधिक स्वच्छता कॉम्प्लेक्स का निर्माण किया गया है। 9000 से अधिक गांव में ठोस और तरल कचरा प्रबंधन का कार्य पूरा किया गया है। 77 विकासखंडों में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन की यूनिट स्थापित कर ली गई हैं।
इस वर्ष स्वच्छता ही सेवा अभियान-2024 की शुरूआत देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्म दिन 17 सितम्बर से शुरू हुआ तथा यह स्वच्छता पखवाड़ा राष्ट्र पिता गांधीजी की जयन्ती 2 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें स्वच्छता और पर्यावरण स्थिरता पर विशेष जोर दिया गया है। इस अभियान की थीम है “स्वभाव स्वच्छता – संस्कार स्वच्छता।“ इस वर्ष 17 सितंबर से 2 अक्टूबर 2024 तक चलने वाले इस अभियान की शुरुआत औपचारिक स्वच्छता शपथ और ’एक पेड़ माँ के नाम’ वृक्षारोपण अभियान के साथ हुई। इसका उद्देश्य सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है। इस वर्ष स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की 10वीं वर्षगांठ भी है, जिससे इस अभियान का महत्व और बढ़ भी गया है। आओ! स्वभाव में स्वच्छता लाकर, स्वच्छता को संस्कार बनायें तथा देश को स्वच्छ बनाने में भागीदारी निभायें।