कुदरत की खुदाई 

a great view up into the trees direction sky

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कविता

आर. जे. रमेश, रेडियो मधुबन

कुदरत की खुदाई  दिलों की दुहाई II

जब होता है सब के अन्दर 

सब के लिए  नि:स्वार्थ प्यार, 

तब बरसे बिन बदले ये बरसात 

कुदरत की खुदाई  दिलों की दुहाई II

या इलाही का  देखो ये आलम, 

कैसे उसने भी सजाया इस 

दुनिया का रूप, जो रहता नहीं 

इस दुनिया में, और जिसे रहने 

दिया इस दुनिया में  वो कुछ भी नहीं जाने इस दुनिया 

के बारे में… 

कैसे होती है 

कुदरत की खुदाई  

दिलों की दुहाई  II

पर अनोखा है  ये खेल उसका, 

हर चीज का है एक ही गुण 

सबको इस चक्र से है गुजरना,  

चाहे राजा हो या रंक, 

ये चक्र कभी न रुकता और 

सब को मिलता सुनहरा मौका  

यहाँ पर आने और जाने का, 

पर बहुत कम इस चक्र को जाने,

जाने इसका आदि 

और अंत क्या है ?

ऐसी होती है 

कुदरत की खुदाई 

 दिलों की दुहाई  II

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