धीरे-धीरे चल मेरे आत्मन

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कविता

आर जे रमेश, रेडियो मधुबन

धीरे-धीरे चल मेरे आत्मन 

धीरे-धीरे चल मेरे आत्मन

मन-बुद्धि के इस अलौकिक सफर में  

चलते-चलते थक मत जाना 

प्रभु-प्रेम की मस्त हवाओं में,

इस अनोखी अनदेखी रूहानी राहो में,

धीरे-धीरे चल मेरे आत्मन II

जब कभी धीरज डगमगा जाए   

तो प्रभु-प्रेम का सहारा होता है,

कदम चाहे लडख़ड़ाए, मन का विश्वास तेज हो जाए, 

संग प्रभू के चलने का आनन्द और बढ़ता जाए, 

जब तक है दम रगों में, 

चलते चलो प्रभु-प्रेम की मस्त हवाओ में 

इस अनोखी अनदेखी रूहानी राहो में, 

धीरे-धीरे चल मेरे आत्मन II

है माया के चाल और जाल बहुत इस रस्ते में,

रूकावटे कोई न कोई अनदेखी आती रहती 

रुकना नहीं, डरना नहीं, बस चलते जाना 

एक विश्वासी कदम आपका, 

मिले हज़ार कदम प्रभु के 

प्रभु-प्रेम की मस्त हवाओ में  

इस अनोखी अनदेखी रूहानी राहो में

धीरे-धीरे चल मेरे आत्मन II

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