आओ ले चलूँ मैं, तुम्हें उस युग में

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कविता

आर जे रमेश, रेडियो मधुबन



आओ ले चलूँ मैं, तुम्हें उस युग में
जहाँ मेरा बचपन बीता।
जन्म से मैं राजकुमार
दास-दासी मेरी सेवा में हर पल रहते,
माँ-बाप का मैं लाडला,
रोज देखने आते कई रिश्तेदार
आओं ले चलूँ मैं, तुम्हें उस युग में
जहाँ मेरा बचपन बीता।
भोर, पंछियों की मधुर आवाज़ के साथ
मैं जगुं, और सबको जगा दूँ,
सुन्दर पालने में झुलाऐ मुझे हर कोई,
लगता जैसे अपना भाग्य बनाए
मेरी हर हलचल पर नज़र सबकी
कोई नाचे, कोई गाए, कोई बजाए ढोल सुहाने,
आओं ले चलूँ मैं, तुम्हें उस युग में
जहाँ मेरा बचपन बीता।
मेरी मुस्कान के सभी दीवाने
मुझे नहलाए, मुझे पहनाए करे मेरा सुन्दर शृंगार
खिलाए कोई, घुमाए कोई,
उडूं लेकर मैं पुष्पक विमान,
उत्सव मनाए आए दिन
आनन्द के झूले में झुलता रहूँ हर पल
आओं ले चलूँ मैं, तुम्हें उस युग में
जहाँ मेरा बचपन बीता।
बड़ा हुआ मैं जैसे-जैसे,
आए गुरु महल में ऐसे
पढाए मुझे वो राज की बात
गीत, संगीत और चित्रकला मुख्य विषय
ना दीक्षा, ना परीक्षा
ऐसी हुई पूरी मेरी शिक्षा
आओं ले चलूँ मैं, तुम्हें उस युग में
जहाँ मेरा बचपन बीता।

2 thoughts on “आओ ले चलूँ मैं, तुम्हें उस युग में

  1. बहुत ही सुंदर और महत्वपूर्ण कविता हार्दिक बधाई ।
    आप की ये प्रतिभा देखकर मन हर्षोल्लास से भर गया साझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ????

  2. बहुत ही सुंदर और महत्वपूर्ण कविता हार्दिक बधाई ।
    आप की ये प्रतिभा देखकर मन हर्षोल्लास से भर गया साझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ????

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