खाद्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य
सुन्दर लाल जोशी
यन्तु नद्यौः वर्षन्तु पर्जन्याः सुपिपल्ला औषधयो भवन्तु। अन्नवता मोदनवत्रा मा मिक्षवताम येषां राजाभूयासम। ओदनम उदव्रुवबते, परमेष्ठी वा एषः यदोदनः। परमामेवैनं श्रिय गमयति।
वेदोक्ति के अनुसार यथा समय नदियाँ जल से परिपूर्ण हो, वनस्पतियाँ सब प्रकार के पुष्प फलों, लताओं से परिपूरित हो। अन्न और जल की इस पृथ्वी पर किसी प्रकार की कोई कमी न पड़े। ओदन (चावल) जिस प्रकार भोजन में प्राथमिकता के क्रम में आता है उसे भोजन के राजा के रूप में हम स्वीकार करें। भोजन करने वाले के समक्ष परोसा हुआ अन्न स्वयं ब्रह्म स्वरूप है। यह हम सबके लिए शुभदायक और मंगलकारी हो।
इसका आशय यह हुआ कि अन्न की शुचिता पर हमारा स्वास्थ्य, हमारी कार्य प्रणाली, हमारी नैतिकता और जीवन जीने की शैली निर्भर करती है। इसलिए ‘जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन’ की अवधारणा के अनुरूप हम जिस प्रकार के अन्न का स्वयं के शरीर को भोग लगाते हैं। उसी प्रकार के मनोदशा हमारी बनती है। महाभारत काल में जब भीष्म पितामह 6 माह तक शर शैय्या पर लेटे लेटे अपनी ऐच्छिक मृत्यु के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। तब उन्होंने भी एक प्रश्नकर्त्ता की जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा था कि मेरी यह दशा इसलिए हुई हो रही है कि मैंने दुर्योधन का दिया हुआ, अन्याय से कमाया हुआ अन्न खाया है। इसलिए मुझे शर शैय्या पर लेट कर अपने शाश्वत सत्य याने मृत्यु की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। जब तक उस अन्न का कुछ भी अंश मेरे खून में रहेगा। तब तक मैं मृत्यु को भी प्राप्त न हो पाऊँगा। इसलिए उस अन्न से बने हुए रक्त की एक एक बूंद शरीर से निखरने के बाद ही मैं अपनी मृत्यु को प्राप्त करूँगा। ऐसा इसलिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन की अवधारणा को सही ढंग से समझ सके।
वैसे भी मनुष्य का स्वास्थ्य उसके द्वारा लिए गए संतुलित आहार पर निर्भर है। संतुलित आहार से आशय है कि जिस भोजन में पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाईड्रेट्स, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज लवण, रेशे एवं पेयजल उपलब्ध हो। इससे न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक विकास में भी सहायता मिलती है। भोजन के इन अवयवों से रहित भोज्य पदार्थ केवल उदरपूर्ति में सहायक हो सकते है लेकिन संतुलित विकास के लिए हमें संतुलित आहार की ही आवश्यकता पड़ती है। इसलिए चिकित्सक भी हमें पर्याप्त मात्रा में सब्जी, फल पदार्थ, दूध, अंडा, मांस, दालें आदि अपने भोजन में लेने के लिए कहते हैं। शरीर निर्माण में भोजन एक महत्वपूर्ण तत्व है। इससे पर्याप्त मात्रा में शरीर में कार्य करने के लिए ऊर्जा बनी रहती है। इसलिए पोषक तत्वों के साथ साथ भोजन साफ सुथरा होना चाहिए।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार एक दिन में करीब 16 लाख लोग बीमार होते हैं और हर दिन 5 वर्ष से कम उम्र के 30-40 बच्चे खराब गुणवत्ता वाले खाने की वजह से अपनी जान गँवा देते हैं। साथ ही डायरिया, कैंसर, अपच आदि लगभग 200 ऐसी बीमरियाँ हैं जो अस्वच्छ खाना खाने की वजह से होती है। ऐसा भोजन जो कि हमें गलियों, सस्ते होटल आदि में खाने को मिलता है। उसमें सस्ता तेल, मैदा, गुणवत्ताविहीन मसाले और कम गुणवत्ता के अन्न प्रयोग किए जाते हैं। इससे मानव समाज का वर्ल्ड फूड सेफ्टी का अधिकार कुप्रभावित होता है। इसलिए खाद्य व्यवसायियों को लाइसेंसिंग और रजिस्ट्रीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत कार्य करना होता है। इससे जनजागरूकता भी बढ़ती है और जान जोखिम की स्थिति से भी मानव समाज बच जाता है।
इस रूप में 20 दिसंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 07 जून को सुरक्षित भोजन के असंख्य लाभों का उत्सव मनाने के लिए एक दिन के लिए चिह्नित किया गया और यह प्रस्ताव रखा गया कि हर वर्ष 07 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाए और तब से अनवरत यह प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 2019 में मनाया गया खाद्य सुरक्षा दिवस का विषय ‘खाद्य सुरक्षा, सभी का व्यवसाय’। इसलिए आज इस रूप में प्रतिवर्ष यह खाद्य सुरक्षा दिवस एक नई थीम के साथ मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त फूड सेफ्टी के कुछ मानक भी तैयार किए गए हैं जिनमें बताया गया है कि सब्जियों को खूब सही ढंग से धोकर पकाना चाहिए। किसी भी रूप में अधपका भोजन खाने से बचना चाहिए, बाहर के खाने से यथासंभव परहेज करना श्रेयष्कर होता है। अन्न मसाले आदि की अंतिम तिथि से पहले उन्हें इस्तेमाल करना आवश्यक है। खाने को पूरी तरह से चबाकर निगलना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। साथ ही ऐसा विश्वास नहीं किया जाना चाहिए कि खाना फ्रिज में रख कर के ज्यादा देर तक सुरक्षित रहता है। प्लास्टिक के दोने पत्तल आदि में खाना खाने से बचना चाहिए। साथ ही गर्म खाने को तो किसी भी रूप में प्लास्टिक या रबड़ आदि के बर्तनों में गर्म खाना बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। इससे प्लास्टिक घुलकर शरीर के अंदर जाता है जो कि कालांतर में कैंसर, हृदयाघात, टी०बी० जैसे भयंकर रोगों के कारक बनते हैं। इसलिए प्रत्येक दशा में फूड सेफ्टी (भोजन सुरक्षा) के नियमों का पालन किया जाना चाहिए ताकि मानव का स्वास्थ्य कुप्रभावित होने से बच सके।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद दुख भाग भवेत।।