माउंट आबू : प्रकृति और आध्यात्म का अद्भुत संगम
विवेक बनियाल
दोस्तों इस बार मुझे ब्रह्मकुमारीज कोटद्वार सेन्टर की संचालिका बहन बीके ज्योति के आग्रह पर अपने तीन पत्रकार साथियों सुभाष नौटियाल, दिनेश गुसाई व चंद्रजीत बिष्ट के साथ माउंट आबू जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरी यात्रा का शुभारंभ 28 अगस्त 2022 को दोपहर 1ः00 बजे से शुरू हुआ। हम सभी लोग कोटद्वार से बस में सवार होकर हरिद्वार निकल पड़े। हरिद्वार से करीब 4ः00 बजे हमने योगा एक्सप्रेस ट्रेन से मांउट आबू का सफर शुरू किया तथा रात भर दोस्तों के साथ मौज मस्ती करते हुए अगले दिन करीब 1ः00 बजे हम आबू रोड स्थित ब्रह्मकुमारी संस्था के मुख्यालय पहुंचे। जहां देर शाम कॉन्फ्रेंस हॉल में ब्रह्मकुमारीज संस्था द्वारा आयोजित मीडिया कॉन्फ्रेंस सेमिनार में हम ने प्रतिभाग किया। इसमें देश विदेश से आए करीब अट्ठारह सौ पत्रकारों ने भाग लिया। इस दौरान उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में पत्रकारिता जगत में किए गए योगदान पर अपने अनुभव साझा किए। रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन प्रातः कॉन्फ्रेंस हॉल में हमने बहन शिवानी क आध्यात्मिक प्रवचन सुने जिनको सुनकर हम सभी लोग बहुत आनंदित हुए। अगले दिन हम मधुबन क्षेत्र में निकल पड़े। मधुबन अर्थात “शहद का जंगल“ में प्रमुख आकर्षण बाबा की कुटिया और शांति की मीनार देखने को मिली । बाबा की कुटिया वह स्थान है जहां संस्थापक प्रजापति ब्रह्मा ने गहन अध्ययन किया। उसके बाद हम सभी ज्ञान सरोवर की ओर निकल पड़े ।
ब्रह्मकुमारियों ने एक बेहतर शिक्षा अकादमी के लिए इस परिसर का निर्माण शुरू किया इनके द्वारा स्थापित उच्च शिक्षा की एक संस्था अपनी बहन संस्था वर्ल्ड रिन्यूअल स्पिरियुचल ट्रस्ट और राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के साथ 1991 में यह उद्देश्य था कि समाज के सभी वर्गों के लिए संस्था की पहुंच के लिए एक प्रशिक्षण सुविधा प्रदान करना है ।
ज्ञान सरोवर विद्यापीठ में हिंदी सहित विश्व की सभी प्रतिष्ठत भाषाओं में मानव नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों और सिद्धांतों के विकास और व्यवहारिक कार्यान्वयन कार्यक्रम और पाठ्यक्रम प्रदान करती है। ज्ञान सरोवर का भ्रमण कर हम शांतिवन की ओर निकल पड़े। शांतिवन आबू रोड से करीब 6 किलोमीटर दूर है
लगातार बढ़ते हुए ब्रह्मकुमारी समुदाय और इसमें आध्यात्मिक गतिविधियों को समायोजित करने के लिए निर्मित यह परिसर सम्मेलनों, आध्यात्मिक सभाओं के लिए एक विशाल स्थान प्रदान करता है। शांतिवन का मुख्य आकर्षण डायमंड हाल है इस इसके अतिरिक्त एक कॉन्फ्रेंस हॉल भी है ,जिसमें हजारों की संख्या में लोगों के बैठने की व्यवस्था है। अगले दिन हम पीस पार्क देखने गए। पीस पार्क प्यारा और शांत क्षेत्र है। एक प्राकृतिक वातावरण जहां मौन और मनोरंजन है सह-अस्तित्व है । यह पार्क आबू रोड से करीब 8 किलोमीटर दूर प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत नजारा है। यहां प्रतिदिन हजारों पर्यटकों का आवागमन रहता है।अगले रोज हम सभी लोग माउंट आबू की ओर निकल पड़े माउंट आबू राजस्थान राज्य के सिरोही जिले में स्थित एक नगर है । यह अरावली पहाड़ियों में स्थित एक हिल स्टेशन है जो 22 किलोमीटर लंबे और 9 किलोमीटर चौड़े पथरीले पठार पर बसा है । प्राकृतिक सुषमा और विभोर करने वाली वनस्थली का पर्वतीय स्थल आबू पर्वत ग्रीष्मकालीन पर्वतीय आवास और पश्चिमी भारत का प्रमुख पर्यटन केंद्र है। यहां स्वस्थवर्धन जलवायु के साथ एक परिपूर्ण पौराणिक परिवेश भी हैं। यहां वास्तुकला का हस्ताक्षरित कलात्मकता भी दृष्टव्य है।
आबू का आकर्षण है कि, यहां आए दिन सैलानी का यहां जमघट लगा रहता है। आबू पहुंचकर हमने प्रसिद्ध दिलवाड़ा मंदिर के दर्शन किए यह मंदिर प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच राजा वास्तुपाल तथा तेजपाल नामक दो भाइयों ने करवाया था। मान्यता है कि यह मंदिर जैन धर्म के तीर्थांकारों को समर्थित है। इसके अतिरिक्त गोमुख मंदिर, माउंट आबू वन्य जीव अभयरण्य आदि भी यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं । इस मंदिर की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्व एवं संगमरमर पत्थरों पर बारीकी से नक्काशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही जिले के इस विश्व विख्यात मंदिर में शिल्प सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ खजाना है जिसे दुनिया में और कहीं नहीं देखा जा सकता है । हालांकि जेनियों राजस्थान में अन्य स्थानों पर कई मंदिरों का निर्माण किया लेकिन दिलवाड़ा के मंदिरों को सबसे प्रभावशाली मंदिर माना जाता है । मंदिरों के दर्शन के उपरांत हमने नक्की झील का भी आनंद लिया। साथी फोटोग्राफी का मजा भी लिया। नक्की झील अरावली रेंज में माउंट आबू के भारतीय हिल स्टेशन की ऐसी झील है जो देश विदेश से आए पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है ।झील के पास पहाड़ियों पर रघुनाथ मंदिर और महाराजा जयपुर पैलेस भी है। झील मे नौका बिहार का अपना अलग ही मजा है । इसके अलावा झील के चारों ओर घुड़सवारी की भी सुविधा उपलब्ध है । करीब 1 सप्ताह के भ्रमण के बाद वापसी में 3 सितंबर को वापस उसी ट्रेन से हरिद्वार होते हुए कोटद्वार पहुंच गए।