मेरी दो कविताएं

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 मैं डरता नहीं

आर जे रमेश, रेडियो मधुबन

मन में बस ये आग जलती रहे,

डर को मैं पीछे छोड़ती रहे।

अंतर्मन की आवाज़ सुनूँ मैं,

हर पल नए लक्ष्य को चुनूँ मैं।

कदमों में है ताकत, नज़र में है जुनून,

हर मुश्किल को करूँ मैं बेमज़ून।

असफलता से मैं नहीं घबराऊँगा,

नए सिरे से फिर संघर्ष कर जाऊँगा।

आत्मविश्वास मेरा मेरा सहारा है,

इस राह पर मैं अकेला नहीं जा रहा।

हर पल नया सबक मिलता है,

मैं सीखता हूँ और बढ़ता जाता हूँ।

अंतिम चरण (मुकम्मल):

मैं डरता नहीं, मैं हारता नहीं,

मैं जीता हूँ, मैं उड़ता हूँ।

आगे बढ़ने का है जुनून,

मैं हूँ अजेय, मैं हूँ अमर।

ना तेरा, ना मेरा

आर जे रमेश, रेडियो मधुबन

ना तेरा, ना मेरा

फिर भी लड़ाई किस बात की है

कैसी ये लड़ाई सोच जरा मानव

तू क्या है तेरा जो तूने लाया था

धरती माँ की गोद

सबकी है बराबरी

फिर क्यों ये मन

भरता है नफरत की बाढ़री

धर्म जाति रंग

ये सब है बहाने

इंसानियत का खून क्यूँ है बहाने

आ मिलके चले

दूर करे अंधेरा

रौशनी फैलाए

दिलों का घेरा

हम सब हैं एक

दिल एक ही धड़कता है

फिर ये क्यों दिल

अपनों को तड़पता है

एकता का रंग मिलाओ आ

सपनों की ये पोटली खोलो आ

धर्म जाति रंग

ये सब है बहाने

इंसानियत का खून क्यूँ है बहाने

आ मिलके चले

दूर करे अंधेरा

रौशनी फैलाए

दिलों का घेरा

तेरी मेरी नहीं

ये सबकी धरती है

प्यार से बाटें

फिर कैसी ये हस्ती है

चोटिल ना कर

ना फेके पत्थर

मन को सुकून

बस प्यार का अंबर

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