अंतर्मन में देख जरा

Spread the love

कविता

आर जे रमेश, रेडियो मधुबन

अंतर्मन में देख ज़रा

जब जब तेरी बातें सुनता हूँ , 

मेरा अंतर्मन शुद्ध हो जाता है,

बिना सोचे ही दिल ये कहता है 

अंतर्मन में देख ज़रा II

साँसों की इस माला में, 

जब याद तेरी बस जाती है,

सुकून साँस को मिलता है 

कहता है दिल मेरा अब   

अंतर्मन  में देख ज़रा II

कई जन्मों से भटकता रहा यहाँ-वहाँ  

जब मिला तुझसे, सारी थकान मिट गई  

मिलते ही तुमसे, हो गया दर्शन चारों धाम का, 

कहता है दिल मेरा अब   

अंतर्मन  में देख ज़रा II

रावण वाली लंका को ढूंढ़ता था बाहर कहीं, 

जाना तुझसे मिलकर वो बाहर नहीं  

मेरे अंदर छुपी है  कहीं, 

अब न कोई गम किसी बात का 

जब हर बात की दवा तू,

पाकर तुझको पा लिया मैंने तीनों लोक 

कहता है दिल अब मेरा 

अंतर्मन  में देख ज़रा II

मन ही माया, मन ही पूजा 

मन का ही खेल सब-रे,

मन को करो अब प्रभु अर्पण 

हो जाओ मनजीत,

बनो अब जगतजीत,

कहता है दिल मेरा अब   

अंतर्मन  में देख ज़रा II

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *