शिक्षा में नवाचारी गतिविधियों की प्रासंगिकता
राजीव थपलियाल, प्रधानाध्यापक
हम सभी इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि,नवाचार (नव$आचार)किसी प्रक्रिया में कुछ अतिरिक्त प्रयास करके,परिवर्तन लाने से है। नवाचार के अंतर्गत हम लोग कुछ नया और उपयोगी करने के लिए बड़े उत्सुक रहते हैं।जैसे पठन-पाठन को ज्यादा रूचिकर औए प्रभावी बनाने के लिए कोई नई विधा या नई तकनीक अपनाना।यह तो सर्वविदित है कि,प्रत्येक वस्तु या क्रिया में परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है परिवर्तन से ही विकास के चरण निरन्तर आगे बढ़ते हैं परिवर्तन एक जीवंत गतिशील एवं आवश्यक प्रक्रिया है जो समाज को वर्तमान व्यवस्था के प्रति और अधिक उपयोगी तथा सार्थक बनाती है। इन सभी तथ्यों/बातों से नवचेतना और उत्सुकता का संचार होता है इसकी प्रक्रिया विकासवादी और नावगत्यात्मक होती है।इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि,परिवर्तन और नवाचार एक दूसरे के पारस्परिक पूरक या पर्याय है।हम सभी को यह जानकारी भी होनी ही चाहिए कि,“नवाचार कोई नया कार्य करना ही मात्र नहीं है वरन किसी भी कार्य को नए तरीके से करना भी नवाचार है “ हम सभी लोग महसूस करते हैं कि,व्यक्ति और समाज में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव शिक्षा पर भी पड़ा है शिक्षा को समयानुकूल रोचक बनाने के लिए शैक्षिक विधाओ में नवाचार ने अपनी उपयोगिता और सार्थकता स्वयं सिद्ध कर दी है। महान विचारक ट्रायटेन के अनुसार -“शैक्षिक नवाचारों का उद्भव स्वतः नहीं होता बल्कि उन्हें खोजना पड़ता है तथा सुनियोजित तरीके से इन्हें प्रयोग में लाना होता है ताकि शैक्षिक कार्यक्रमों को परिवर्तित परिवेश में तीब्र गति मिल सके और परिवर्तन के साथ गहरा तारतम्य बनाया जा सके “ इस प्रकार नवाचार एक नवीन विचार है एक व्यवहार है अथवा वस्तु या फिर कोई नया तरीका है जो नवीन और वर्तमान का गुणात्मक स्वरूप है। नवाचार की परिस्थितियाँ हर क्षेत्र में अलग अलग अर्थ बताती हैं इनके प्रयोग के तरीके भी अलग अलग रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं। एक दूसरे विचारक टी.पी. राव ने नवाचार को लेकर अपनी बात इस तरह से रखी -“किसी उपयोगी कार्य के लिए किसी व्यक्ति या निकाय के द्वारा किया गया विचार अथवा अभ्यास नवाचार कहलाता है“ सभी कार्य ऐसे होते हैं जो पहले कहीं न कहीं किसी न किसी के द्वारा अभ्यास में लाये गए हों नवाचार कहलाता है“ कहने का आशय यह है कि,सभी कार्य ऐसे होते हैं जो पहले किसी न किसी के द्वारा पूर्व में किये जा चुके हैं,परंतु यदि हमने अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पूर्व में किये गए कार्य को यदि अपनी नई रचनात्मक तथा सृजनात्मक शैली प्रदान कर दी और उसे बेहतरीन बना दिया तो हमारा यही प्रयास नावचार बन जाता है।कई बार हमारे सामने एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाता है कि नवाचार की आवश्यकता क्यों है तो इस सम्बन्ध में– राबर्ट मर्डोक का कथन सटीक बैठता है कि “दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है अब बड़े छोटों को हरा नहीं पायेंगे अब जो तेज है वो धीमे चलने वाले को हराएंगे“ यदि हमें अपने छात्रों की उन्नति करनी है तो हमें छात्रों का नामांकन ,उपस्थिति और ठहराव बढ़ाने के साथ साथ ही रोचक शिक्षण की पद्धतियों में परिवर्तन लाना ही होगा। जिस प्रकार आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है ठीक उसी प्रकार आज शिक्षण पद्धतियों में बदलाव छात्रों को विद्यालय लाने के तरीकों में परिवर्तन नितान्त आवश्यक है। गुरुजनों का मधुर व्यवहार छात्रों के प्रति सुखद व सकारात्मक व्यवहार शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते है।
यह बात बड़ी दीगर है कि कुछ बदलाव करने के लिए, समाज की बेहतरी के लिए जो ठोस कदम उठाए जाते हैं, जो नवाचार प्रयोग में लाये जाते हैं,शुरुआती दौर में कठिन मेहनत तो करनी पड़ती है कुछ कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है लेकिन इसका आशय ये कतई नहीं है कि हम नई पद्धतियों को न स्वीकारें। क्योंकि नवाचार में या तो सफलता मिलेगी वरना एक नया अनुभव अवश्य ही मिलेगा जो आगामी रणनीति में उपयोगी होगा। हमें परंपरागत विधियों के अतिरिक्त नवीन विधाओं को अपनाना होगा क्योंकि परिवर्तन सार्वभौमिक सत्य है।इस परिप्रेक्ष्य में महान वैज्ञानिक डार्विन का यह नियम कितना सार्थक लगता है कि,“प्रकृति उन्हीं को जीने का अधिकार देती है जो जीवन संघर्ष में सफल होते हैं“ यह नियम लगभग सभी जगह लागू होता है इसलिए स्वयं के अस्तित्व की खातिर,अपने शैक्षिक कौसलों के विकास की खातिर,हम सभी शिक्षक साथियों को नवाचार स्वीकारने ही होंगे,और एक नई दिशा और दशा देने हेतु भागीरथ प्रयास करने होंगे।
नवाचार की कुछ खास विशेषताओं से रूबरू होने का प्रयास करते हैं–
1-शैक्षिक नवाचार में क्रियाशीलता की प्रवृत्ति उपस्थित होती है।
2-.यह प्रयास पूर्ण किया जाने वाला कार्य है।
3.-नवाचार के द्वारा वर्तमान विधियों और परिस्थितियों में सुधार लाने का प्रयास किया जाता है।
4.-शिक्षा में नवाचार के माध्यम से नवीनतम तकनीकों को विद्यालय में पहुँचाया जाता है। तभी
नवीन शिक्षण तकनीकों के माध्यम से बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव, हो पाता है।
’ शैक्षिक नवाचार के सामान्य उद्देश्यों पर एक दृष्टि डाल लेते हैं।’
1.-शिक्षा में नवाचार के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया को सरल बनाया जाता है।
2-.बच्चों का सर्वांगीण विकास किया जाता है, जिससे बच्चों की अंर्तनिहित शक्तियों का विकास हो सके।
3-.छात्रों और शिक्षकों के अंदर नवीनतम वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सके। जिससे वे लोग समाज में पनपते अंधविश्वास और कुरूतियों से हमेशा दूर रहें।
4.-शिक्षा में शैक्षिक नवाचारों के प्रयोग का मुख्य उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को शानदार ढंग से विश्व स्तरीय प्रतिस्पर्धा में आगे पहुंचाना है जिससे कि संसार में हमारे भारत वर्ष की शिक्षा प्रणाली आदर्श रूप में जानी जा सके।
नवाचार का हमारे लिए महत्व…….
1,–मूल्य शिक्षा के क्षरण को रोकने के लिए
2,–आपसी सद्भाव बढाना,मिलजुल कर कार्य करने पर जोर देना
3–परिवर्तन के अनुसार शिक्षा प्रणाली अपनाना
4–अनेक समस्याओं का समाधान
5,–शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता के लिए
6,–ज्ञान का स्थायित्व
7–शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु
8–शिक्षण अधिगम सामग्री के बेहतर प्रयोग के लिए
9–छात्रों के सर्वांगीण विकास के साथ साथ विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास के लिए
10–नवीन शिक्षण विधियों के ज्ञान , तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास हेतु
11–शिक्षा व्यवस्था में सुधार व
अनुसंधान के लिए
12–मनोविज्ञान के सिद्धांतों के प्रयोग के लिए।
शैक्षिक नवाचार की आवश्यकता को हम इस तरह से देख सकते हैं।
1,—मानव संसाधन का विकास करने हेतु।
2 -सामाजिक परिवर्तन के अनुसार शिक्षा तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि हेतु।
’शैक्षिक नवाचार के क्षेत्र मेरे नजरिये में इस प्रकार से हैं।’
1–शिक्षण अधिगम
2–पाठ्य सहगामी क्रियाकलाप
3–सामुदायिक सहभागिता
4–विद्यालय प्रबंधन
5–विषयगत कक्षा -शिक्षण एवं समसामयिक दृष्टिकोण का पदार्पण।
(लेखक प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा, विकासखंड-जयहरीखाल,पौड़ी गढ़वाल -उत्तराखंड में कार्यरत हैं।)