तो क्या स्वतंत्रता के मायने बदल गये हैं?
राजीव थपलियाल
स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
अत्यंत हर्षानुभूति हो रही है कि, हम सभी भारत वसुंधरा वासी 15 अगस्त 2023 को स्वतंत्रता के 76 वर्ष पूर्ण कर, 77 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। हालाँकि,विगत कुछ वर्षों में हम सभी ने अदृश्य महामारी के मार झेली है। किंतु,आगे की ओर बढ़ते और चलते रहना ही जीवन है। सर्वप्रथम तो इस शानदार और आलोकमय अवसर पर हम सभी उन महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन करते हैं,उनका हृदय की गहराइयों से अभिनंदन करते हैं,जिन्होंने अपनी आराम से जीवन यापन करने की बलवती स्पृहा का परित्याग करके,लोगों के दिल और दिमाग में स्वतंत्रता की चिंगारी जगाने से लेकर,देश की आजादी के लिए अपने खून का बलिदान देने में, जरा सा भी संकोच नहीं किया।
आज, आजादी के 76 साल बाद, लोगों के लिए स्वतंत्रता दिवस और स्वतंत्रता, दोनों के ही मायने बहुत बदल गए हैं। कुछ लोगों के लिए स्वतंत्रता दिवस का मतलब विद्यालयों में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों से है तो कुछ लोगों के लिए ध्वजारोहण करना एक जिम्मेदारी की तरह है और झंडा फहराते ही स्वतंत्रता दिवस भी समाप्त हो जाता है। और वहीं कुछ लोगों के लिए ये महज़ एक छुट्टी का ही दिन बन के रह गया है ।वर्तमान समय में स्वतंत्रता के मायने भी बदल गए हैं। जैसे कुछ लोगों को लगता है कि, उन्हें कुछ भी कहने और करने की आजादी है।
मेरी व्यक्तिगत राय है कि,“किसी देश में रहने वाले व्यक्तियों की स्वतंत्रता सिर्फ उतनी ही है, जितना कि उस देश का संविधान उन्हें मुहैया कराता है।“
हमें गांधी, नेहरू, पटेल, अम्बेडकर जी जैसे लोगों का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने हमें ऐसे उदार संविधान से रूबरू कराया जो 1950 के दशक में समानता की बात कर रहा था। एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका में अश्वेत लोगों के पास वोट करने का अधिकार नहीं था जबकि हमारे देश के हर नागरिक को बिना लिंग या जाति के भेदभाव के वोट करने का अधिकार मिला था।
अगर हमें अपनी आजादी के सही मायने जानने हैं तो इसे हमें अपने संविधान में ढूंढ़ना चाहिए। संविधान में दिए हुए मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्यों से औऱ अपने कार्यक्षेत्र की गतिविधियों से समझने का प्रयास करना चाहिए।अपने आप खुद अच्छे कार्य करके दूसरों के लिए बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करने की तरफ बढ़ना चाहिए।सर्वप्रथम तो हम सभी को अपने अंदर मैं वाली भावना का परित्याग करके हम की भावना का विकास करते हुए, सभी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने के प्रयास करते रहने चाहिए।दूसरों के द्वारा किये गए अच्छे कार्यो की खुलकर सराहना की जानी चाहिए,अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ अथवा सर्वज्ञाता समझने की भूल कभी भी नहीं करनी चाहिये।
यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते ही हैं कि,आजादी कभी भी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में खून के माध्यम से नहीं जाती है। इसके लिए हर पीढ़ी को सबसे पहले इसके मर्म को समझना पड़ता है, इसके लिए लड़ना होता है, इसे बचा के रखना होता है और अपनी आने वाली पीढ़ी को सौंपना होता है। जहाँ तक मैं समझता हूँ कि,आजादी को बचाने का एक आसान तरीका यह है कि, हमारी जीवन यापन करने की शैली कुछ इस तरह से होनी चाहिए कि, हम दूसरे के जीने के तरीके और उसकी आजादी, दोनों की कद्र करना सीखें। इस परिप्रेक्ष्य में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कितनी दीगर बात कही थी कि, “जो लोग दूसरों की आजादी छीनते हैं, वो खुद आजादी के लायक नहीं हैं।“ इसलिए हमें हर हालात में अपनी आजादी के साथ-साथ दूसरों की आजादी की भी सुरक्षा करनी चाहिए।
मेरा ऐसा मानना है कि,असली आजादी तो मन से होती है।
क्या हम अपने संविधान में दिए हुए सभी अधिकारों का पूरी तरह इस्तेमाल कर पाते हैं ?
अधिकांश लोगों का उत्तर होगा, ’ नहीं ’ क्योंकि इसके पीछे कारण है कि,हमारे समाज को ऐसी बहुत सारी कुरीतियों ने जकड़ के रखा है जिसके चलते हम अपने ही समाज के डर से अपने अधिकारों का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि, हम सभी लोग बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि, स्वतंत्रता केवल एक शब्द ही नहीं है बल्कि एक भाव है,एक एहसास है जो संतुष्टि और पूर्णता की भावना से ओतप्रोत होता है। आज समय की माँग के अनुरूप
अपने वर्तमान और अपने अतीत को देखते हुए हम सभी का दायित्व है कि, अपनी आने वाली पीढ़ी को हम इस आजादी के महत्व को बड़ी गंभीरता से बताएँ और आज से 76 साल पहले हमने इसे किस-किस कीमत पर हासिल किया था, इस बात से उन्हें जरूर अवगत करायें।
उन्हें इस बात का एहसास कराने की कोशिश करें कि, ‘स्वतंत्रता’ शब्द के साथ जुड़ा हर भाव केवल मनुष्य ही नहीं जानवरों एवं पेड़ पौधों तक में महसूस किया जाता है।
इसका महत्व तब पता चलता है जब आसमान में बेफिक्री से उड़ता एक परिंदा अपने ही किसी साथी को पिंजरे में कैद देखता है।
इसकी कीमत तब समझ में आती है जब जंगल में इस डाल से उस डाल पर अपनी ही मस्ती में उछलता बंदर, अपने किसी अन्य साथी को चिड़ियाघर के पिंजरे में कैद हुआ देखता है,जो कि लोगों का मन बहला रहा होता है।
इसकी चाहत को महसूस तब किया जाता है जब खुद को जंगल का राजा समझने वाला शेर अपने ही किसी साथी को किसी सर्कस में बच्चों को करतब दिखाता हुआ देखता है।
इसके आनंद की कल्पना तब महसूस होती है जब मिट्टी में अपनी जड़ें फैलाकर अपनी विशाल टहनियों और पत्तों के साथ हवा में इठलाते किसी पेड़ को ,गमले की मिट्टी में खुद को किसी तरह समेटे हुए अपने आस्तित्व के लिए संघर्ष करता अपना ही एक साथी दिखाई देता है।
परन्तु आज के समय में हम में से हर किसी के लिए यह बड़ी चिंता का विषय है कि,हमारे नौनिहाल जिनको आज हम आधुनिकता की चादर ओढ़ाकर ऐशो आराम के हर साधन के साथ बहुत ही नजाकत और लाड़ प्यार से पाल रहे हैं वे इसका महत्व कैसे समझेंगे?
क्या 15 अगस्त के दिन टीवी और अखबारों में छपने वाले बड़े/बड़े ब्रांडस पर स्वतंत्रता दिवस पर मिलने वाली विशेष छूट और आँनलाइन शाँपिग पर, इस दिन मिलने वाली बड़ी बड़ी डील्स से?
या फिर साल में सिर्फ दो दिन रेडियो पर बजने वाले देशभक्ति के कुछ चुनिंदा गानों व गीतों से?
बड़ी विचित्र विडम्बना है कि,हमारे बच्चों को फिल्मी कलाकारों और क्रिकेट के देश विदेश के सभी सितारों के नाम तो याद हैं लेकिन भारत की आजादी में योगदान देने वाले महानायकों के नहीं। अतः हमें अपने बच्चों को उपरोक्त्त जानकारियां देने हेतु एक सकारात्मक पहल तो करनी ही होगी। समय रहते ध्यान दिया जाय तो अच्छा ही होगा। वरना फिर हम लोग ही अपने आप को कोसने लगेंगे और कहेंगे कि– निकले थे कहां जाने के लिए,
पहुंचे हैं कहां मालूम नहीं।
अब अपने भटकते कदमों को,
मंजिल का निशां मालूम नहीं।।
(लेखक, प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा, संकुल केंद्र -मठाली, विकासखंड-जयहरीखाल, जनपद-पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड हैं)