पर्यावरण संरक्षण में हमारी जिम्मेदारी

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राजीव थपलियाल
पर्यावरण संरक्षण से तात्पर्य पर्यावरण की सुरक्षा करना है। हम सभी लोग यह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि, पेड़ पौधों तथा वनस्पतियों का मानव जीवन में अत्यधिक महत्व ही नहीं है,बल्कि बहुत बड़ा योगदान है।वे मनुष्य के लिए अत्यंत उपयोगी हैं,वे मानव जीवन का आधार हैं।परन्तु विचित्र विडंबना है कि, आज मानव पेड़-पौधों के इस महत्व व उपयोग को न समझते हुए इनकी उपेक्षा कर रहा है।गौण लाभों को महत्व देते हुए इनका लगातार दोहन करता चला जा रहा है।हम लोग अपने फायदे हेतु जितने पेड़ काट रहे हैं,उतने से दो चार ज्यादा पेड़ कहीं लगा भी देते तो कितना अच्छा होता।परन्तु ऐसा नहीं हो पा रहा है, और भूमि पर पेड़ों की संख्या लगातार घटती ही जा रही है। यह अपने आप में हम सभी भारत वसुंधरा वासियों के लिए अत्यन्त चिंता का विषय है। इसके परिणामस्वरुप अनेकों समस्याएँ मनुष्य के सामने दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं।अब बात आती है कि, पर्यावरण संरक्षण क्यों जरुरी है? तो हम कह सकते हैं कि,हर प्राणी अपने जीवन यापन हेतु वनस्पति जगत पर आश्रित है।मनुष्य हवा में उपस्थित ऑक्सीजन को श्वास द्वारा ग्रहण करके जीवित रहता है।पेड़-पौधे ही प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस तरह मनुष्य के जीवन का आधार पेड़-पौधे ही उसे प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त प्राणियों का आहार वनस्पति है। वनस्पति ही प्राणियों को पोषण प्रदान करती है। इसलिए पर्यावरण संरक्षण बहुत जरुरी है।कुछ समय पहले से कल-कारखानों की वृद्धि को विकास का आधार माना जाता रहा है।खाद्य उत्पादन के लिए कृषि तथा सिंचाई पर जोर दिया जाता रहा है, परन्तु वन-संपदा की महत्ता समझने की ओर जितना ध्यान देना आवश्यक था, उतना दिया ही नहीं गया। पेड़ पौधों को जमीन घेरने वाला माना जाता रहा और उन्हें काटकर कृषि करने की बात सोची जाती रही है।चूल्हा जलाने की लकड़ी तथा इमारती लकड़ी की आवश्यकता के लिए भी वृक्षों को अंधाधुंध काटा जाता रहा है और उनके स्थान पर नए वृक्ष लगाने की उपेक्षा बरती जाती रही है। इसलिए आज हम वन संपदा की दृष्टि से बहुत निर्धन होते चले जा रहे हैं और उसके कितने ही परोक्ष दुष्परिणामों को प्रत्यक्ष हानि के रूप में सामने देख रहे हैं।हमें यह स्वीकारना ही पड़ेगा कि,
पर्यावरण संरक्षण वर्तमान समय की मांग है।पेड़ पौधों और वनस्पति से धरती हरी-भरी बनी रहे तो उससे मनुष्य को अनेकों प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ होते हैं। ईंधन व इमारती लकड़ी से लेकर फल-फूल,औषधियाँ प्रदान करने, वायुशोधन, वर्षा का संतुलन,पत्तों से मिलने वाली खाद,धरती के कटाव का बचाव, बाढ़ रोकने, कीड़े खाकर फसल की रक्षा करने वाले पक्षियों को आश्रय आदि प्रदान करने वाले अनेक अनगिनत लाभ पेड़ पौधों से हैं। स्काटलैंड के प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक राबर्ट चेम्बर्स ने पेड़ पौधों की उपादेयता के संबंध में कितनी दीगर बात कही थी कि – वन नष्ट होंगे तो पानी का अकाल पड़ेगा, भूमि की उर्वरा शक्ति घटेगी और फसलों की पैदावार कम होती जाएगी,पशु नष्ट होंगे,पक्षी घटेंगे, वन-विनाश का अभिशाप जिन पांच प्रेतों की भयंकर विभीषिका बनाकर खड़ा कर देगा वे हैं- बाढ़, सूखा, गर्मी, अकाल और बीमारी। हम जाने-अनजाने में वन संपदा नष्ट करते हैं और उससे जो पाते हैं, उसकी तुलना में कहीं अधिक गंवाते हैं।दूसरी तरफ यदि नजर डालें तो हम पाते हैं कि, वायु प्रदूषण आज समूचे संसार के लिए एक बहुत ही विकट समस्या है। शुद्ध वायु का तो जैसे सभी जगह अभाव सा हो गया है। दूषित वायु में साँस लेने वाले मनुष्य और अन्य प्राणी भी स्वस्थ व निरोगी किस प्रकार रह सकेंगे यह भी चिंता का कारण है।शुद्ध वायु ही प्राणों का आधार है।वायुमंडल में व्याप्त प्राण वायु ही जीव-जंतुओं को जीवन देती है।इसके अभाव में अनेकों विषैली गैसों का अनुपात बढ़ता जाता है और प्राणिजगत के लिए विपत्ति का कारण बनता है।कई रिसर्च साइंटिस्ट्स का मत है कि, पृथ्वी के वायुमंडल में प्राण वायु कम होती जा रही है और दूसरे तत्व बढ़ते जा रहे हैं। यदि वृक्ष-संपदा को नष्ट करने की यही गति रही तो वातावरण में दूषित गैसें इतनी अधिक हो जाएंगी कि, पृथ्वी पर जीवन दूभर हो जाएगा इस विषम स्थिति का एकमात्र समाधान हरीतिमा संवर्धन है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हरीतिमा संवर्धन नहीं किया गया तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएँ बहुत ही विकराल रूप ले लेंगी।
प्राचीनकाल की तरफ दृष्टि डालें तो हम पाते हैं कि, ऋषि-मुनि भी अपने आश्रम के आस पास वन लगाते थे। उन्हें पर्यावरण संरक्षण के विषय में जरुर पता रहा होगा। वे वृक्ष व वनस्पतियों को प्राणिजगत का जीवन मानते थे और उन्हें बढ़ाने को सर्वोपरि प्रमुखता देते थे।वृक्षों की कमी देखकर कवि हृदय ऋषि विह्वल हो उठते थे और धरती से पूछते थे कि,

“पत्तों के समान ही जिनमें पुष्प होते थे और पुष्पों के समान ही जिनमें प्रचुर फल लगते थे और फल से लदे होने पर भी जो सरलता से चढने योग्य होते थे, हे माता पृथ्वी! बता वे वृक्ष अब कहाँ गए?”

धर्मशास्त्रों में तुलसी,वट,पीपल,आंवला आदि वृक्षों को देव संज्ञा में गिना गया है।वृक्ष मनुष्य परिवार के ही अंग हैं,वे हमें प्राण वायु प्रदान करके जीवित रखते हैं।वे हमारे लिए इतने अधिक उपयोगी हैं,जिसका मूल्यांकन करना कठिन है।अतः हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने का प्रयत्न करना चाहिए।हम सभी लोगों का यह प्रयास होना चाहिए कि,पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाएं।वास्तव में पर्यावरण संरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिसे अकेले कोई भी हल नहीं कर सकता। न तो मात्र सरकारी स्तर पर बढ़ते पर्यावरण असंतुलन को नियन्त्रित किया जा सकता है तथा न ही कोई संगठन कर सकता है। इसके संरक्षण एवं संवर्द्धन में प्रत्येक व्यक्ति को अपना-अपना योगदान देना होगा तभी यह कार्य आसान हो सकता है। इसके लिए हम सभी कुछ न कुछ योगदान अवश्य कर सकते हैं, चाहे हम विघार्थी हैं, शिक्षक हैं, जनप्रतिनिधि हैं,डॉक्टर हैं, वकील हैं, किसान हैं, युवा हैं, गृहणी हैं,समाज सेवी हैं, या व्यापारी। हम सबकी पर्यावरण संरक्षण में भूमिका हो सकती है, यदि हम दैनिक जीवन में कुछ छोटीकृछोटी बातों का ध्यान रखकर कार्य करें।
जिन कार्यों को हम कर सकते हैं–

  1. पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों का न्यूनतम विरोध अवश्य करें।
  2. कागज़ का दोनों तरफ से प्रयोग करके कागज़ की खपत घटायें तथा लिफाफों को भी पुनः प्रयोग में लायें।
  3. पुरानी पुस्तकें पुस्तकालयों या जरूरतमंद लोगों को भेंट कर दें।
  4. यात्रा के लिए यथासंभव सार्वजनिक वाहनों का ही प्रयोग करें। कम दूरी की यात्रा के लिए साईकिल का प्रयोग करें।
  5. बाज़ार जाते समय कपड़े या जूट का थैला साथ ले जायें, सामान उसी में लायें।
  6. नल बेकार चल रहा हो तो उसे तुरन्त बंद कर दें।
  7. हर प्रकार से जल की बचत करें, क्योंकि जल ही जीवन है।
  8. फलों व सब्जियों के छिलकों को केंचुओं की मदद से खाद बनाने में प्रयोग करें।
  9. खुशी के अवसरों व अपने प्रियजनों की स्मृति में पौधे लगायें।
  10. पर्यावरण संरक्षण में मददगार जीवों यथा गिद्ध, सांप, छिपकली, मेंढ़क, केंचुआ तथा बाघ आदि की रक्षा करें।
  11. पेयजल स्त्रोतों के आसपास सफाई रखें।
  12. वर्षा जल के संग्रह का स्वयं प्रयास करें व सरकारी योजनाओं में सहयोग करें।
  13. परम्परागत जल स्त्रोतोंकृजोहड़, तालाब, नदियों व बावड़ियों आदि का संरक्षण करें।
  14. अपने खेतों की मेंढ ऊंची बनायें ताकि वर्षा का पानी बहकर न जा सके।
  15. पानी का बारकृबार प्रयोग करें जैसेकृसब्जी धोए हुए पानी को पौधों में डाल दें। कपड़े धोए हुए पानी से पोंछा लगा लें या अन्य किसी उपयोग में लाने का प्रयास करें।
  16. व्यर्थ बहते व गन्दे पानी को सोख्ता गड्ढे (सोक पिट्स) बनाकर उसमें डालें। इससे कीचड़ तो समाप्त होगा ही भूमिगत जलस्तर बढ़ाने में भी मद्द मिलेगी।
  17. गोबर गैस प्लांट लगाकर बायो गैस से भोजन बनायें तथा ईंधन के रूप में जलने वाली लकड़ी व गोबर की बचत करें। आजकल तो सरकारें अनुदान देकर गोबर गैस प्लांट भी लगवाती है।
  18. सौर उपकरणों का प्रयोग करके ऊर्जा संसाधन बचायें। सौर उपकरण भी सरकार अनुदान पर उपलब्ध करवाती है।
  19. नियमित रूप से यज्ञ करें ताकि वातावरण शुद्ध रहे।
  20. रतनजोत (जट्रोफा) के अधिक से अधिक पौधे लगाकर बायो डीजल बनाने में सहयोग करें। पौधे लगाने के लिए सरकार सहयोग करती है तथा पैदावार भी खरीदती है।
  21. खाना पकाने के लिए उन्नत व धुंआ रहित चूल्हों का प्रयोग करें।
  22. जंगली जीवकृजन्तुओं की सुरक्षा करें, अवैध शिकार रोकने में सहयोग करें।
  23. जैव खाद व जैव कीटनाशकों का प्रयोग करें, ये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
  24. कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने में अपना सहयोग दें, इससे सामाजिक संतुलन बिगड़ रहा है।
  25. आबादी के बढ़ते दबाव को कम करने के लिए परिवार सीमित रखें।
    इन कार्यों को नहीं करना है—
  26. धूम्रपान कभी न करें, इससे कैंसर व टी.बी. जैसे रोग हो सकते हैं साथ ही वातावरण भी प्रदूषित होता है। सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना दण्डनीय अपराध है, क्योंकि सरकार ने धूम्रपान पर रोक लगा रखी है।
  27. गुटखा व तम्बाकू न खायें, ये मुंह के कैंसर को जन्म देते हैं साथ ही इनकी पाउच व थैलियों से पर्यावरण प्रदूषित होता है।
  28. पॉलिथीन थैलियों का प्रयोग न करें। ये स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों के लिए घातक हैं। सरकार ने भी इनके प्रयोग व फेंकने पर पाबंदी लगा रखी है।
  29. घर का कूड़ाकृकरकट गली में न फेंके बल्कि निर्धारित स्थान पर डालें तथा गीला व सूखा कचरा अलगकृअलग डालें। गीला कचरा खाद बनाने के काम आता है।
  30. डिस्पोजेबल वस्तुओं यथा प्लेट, कप, गिलास आदि का प्रयोग न करें बल्कि पत्तों से बने पत्तल व दोनों (डोनों) का प्रयोग करें या कांच व धातु के बर्तन काम में लें।
  31. दूध निकालने के लिए दुधारू पशुओं को ऑक्सीटोसीन का इंजैक्शन न लगायें। यह पशु व मानव दोनों के लिए नुकसानदेह होता है।
  32. सब्जियों को जल्दी बड़ा करने के लिए भी ऑक्सीटोसीन का इंजैक्शन नहीं लगाना चाहिए। ऐसी सब्जियाँ मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं।
  33. रासायनिक खादों व कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग न करें।
  34. बोतलबंद पानी व कोल्ड ड्रिंक का उपयोग न करें।
  35. शराब न पीयें। इससे धन व स्वास्थ्य दोनों की बर्बादी होती है। साथ ही इसके निर्माण में भारी मात्रा में पानी खराब होता है।
  36. नल को कभी खुला न छोड़े व पानी को व्यर्थ न बहने दें।
  37. पेयजल नलकूपों व अन्य स्त्रोतों के पास गन्दा पानी जमा न होने दें।
  38. सौन्दर्य प्रसाधनों जैसे शैम्पू, क्रीम, सेंट, लिपस्टिक, नेल पॉलिश आदि का प्रयोग न करें। इनसे प्राकृतिक सुन्दरता तो नष्ट होती ही है, इनके निर्माण के दौरान क्लोरोकृफ्लोरो कार्बन गैसें भी निकलती हैं जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं।
  39. चमड़े व अन्य प्राणी अंगों से बनी वस्तुओं का प्रयोग न करें। ये वस्तुएं जंगली जानवरों के अवैध शिकार को बढ़ावा देती हैं।
  40. रेडियो, सी.डी. प्लेयर, टी.वी., डी.जे. आदि धीमी आवाज़ पर ही बजायें। इनसे ध्वनि प्रदूषण फैलता है।
  41. धार्मिक आयोजनों में लाऊड स्पीकरों का प्रयोग न करें, भगवान तो मन की बात ही सुन लेते हैं।
  42. हरे पेड़ों को न स्वयं काटें और न ही दूसरों को काटने दें।
  43. खराब बैट्री कबाड़ी को न बेचें बल्कि विक्रेता को ही लौटायें। कबाडी़ द्वारा इन्हें तोड़े जाने पर शीशा धातु वातावरण में फैल जाता है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है।
  44. प्रेशर हार्न का प्रयोग न करें, यह प्रतिबन्धित है।
  45. घर, कार्यालय आदि में विघुत उपकरणों को बेवजह चलता न छोड़ें।
    (नोट– इस आलेख को तैयार करने में इंटरनेट तथा अन्य संदर्भों की मदद भी ली गई है।) (लेखक प्रधानाध्यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा, संकुल केंद्र-मठाली, विकासखंड- जयहरीखाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड हैं)

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