अपशगुन के भय से 300 सालों से नहीं मनाते होली

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देहरादून। मौसमी मौल्यार, फाल्गुनी बयार अपने साथ लाता है, उत्साह तथा उमंग भरा रंग-बिरंगा होली का त्यौहार। होली के अवसर पर हर कोई उत्साह तथा उमंग के सरोवर में डुबकी लगाना चाहता है, प्रकृति भी मदमस्त होकर इस अवसर पर स्वयं श्रृंगार करती है। बहती बसन्ती बयार में हर कोई प्राणी श्रृंगार रस से सुसज्जित होकर प्रफुल्लित होना चाहता है। हो भी क्यों न, मानव मन में होली का रंग कुछ प्रकार चढ़ता है कि, वह तन-मन की सुध-बुध भूल कर स्वयं में खो जाता है। प्रकृति के प्रति समर्पित इस त्यौहार में भले ही कई कथा, कहानियाँ तथा कविताएँ हों परन्तु होली की शुरुआत कब और कैसे हुई यह आज भी एक अनसुलझी पहेली ही है परन्तु इतना निश्चित है कि, होली की जन्मदाता भारतीय भूमि ही रही है।
समस्त विश्व में होली की अवधारणा प्रस्तुत करने वाली भारतीय संस्कृति में कुछ अनछुए पहलू भी हैं। इसी संस्कुति की छत्रछाया में कई सालों से कुछ क्षेत्रों में होली मनाना आज भी अपशगुन का कारण माना जाता है। अपशगुन का यह रंग इतना गहरा है कि, उत्तराखण्ड के कई गांवों में आज भी होली नहीं मनायी जाती है। साल दर साल गुजर गये परन्तु होली में अपशगुन की यह पहेली इन क्षेत्रों में आज भी अबूज ही बनी हुई है। अपशगुन होने के भय से इन क्षेत्रों के निवासी अबीर गुलाल उड़ाने से आज भी परहेज करते हैं। उत्तराखण्ड के इन गांवों में आज भी होली पर अपशगुन की छाया बलवती है –

देवी के कोप के डर से रुद्रप्रयाग के गांवों मे नहीं मनाते होली
रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लॉक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। तीन सदी पहले जब ये गांव यहां बसे थे, तब से आज तक यहां के लोग होली नहीं खेलते। गांव वालों की मान्यता है कि मां त्रिपुरा सुंदरी के शाप की वजह से 374 सालों से आज भी यहां ग्रामीण होली नहीं मनाते हैं।

कई पीढ़ियों से कायम है परंपरा
गांव वाले मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन बताते हैं। ग्रामीणों के अनुसार 374 सालों से यह परंपरा चली आ रही है क्योंकि देवी को रंग पसंद नहीं हैं। बताया जाता है कि कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार क्वीली, कुरझण और जौंदला गांवों में आकर बसे गये थे। 15 पीढ़ियों से यहां के लोगों ने अपनी परंपरा को कायम रखा हुआ है।
लोगों के अनुसार डेढ़ सौ वर्ष पहले कुछ लोगों ने होली खेली थी तो गांव में हैजा फैल गया था और कई लोगों की जान चली गयी थी। उसके बाद से दोबारा इन गांवों में होली का त्योहार नहीं मनाया गया। इसे लोग देवी का कोप मानते हैं।

कुमाऊं के कई गांवों में नहीं खेली जाती है होली
कुमाऊं में होली का अलग ही रंग जमता है। कुमाऊं में होली का त्योहार बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है। यहां बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली देश-दुनिया में जानी जाती हैं। घर-घर में बैठकी होली का रंग जमता है लेकिन सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के कई गांवों में होली मनाना अपशकुन माना जाता है।
सीमांत पिथौरागढ़ जिले की तीन तहसीलों धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट के करीब सौ गांवों में होली नहीं मनाई जाती है। यहां के लोग अनहोनी की आशंका में होली खेलने और मनाने से परहेज करते हैं। पिथौरागढ़ जिले में चीन और नेपाल सीमा से लगी तीन तहसीलों में होली का उल्लास गायब रहता है। पूर्वजों के समय से चला आ रहा यह मिथक आज भी नहीं टूटा है।
इन तहसीलों में होली न मनाने के कारण भी अलग-अलग हैं। मुनस्यारी में होली नहीं मनाने का कारण इस दिन किसी अनहोनी की आशंका रहती है। डीडीहाट के दूनाकोट क्षेत्र में अपशकुन तो धारचूला के गांवों में छिपलाकेदार की पूजा करने वाले होली नहीं मनाते हैं।
धारचूला के रांथी गांव के बुजुर्गों के अनुसार रांथी, जुम्मा, खेला, खेत, स्यांकुरी, गर्गुवा, जम्कू, गलाती सहित अन्य गांव शिव के पावन स्थल छिपलाकेदार में स्थित हैं। पूर्वजों के अनुसार शिव की भूमि पर रंगों का प्रचलन नहीं होता है। यह सब पूर्वजों ने ही हमें बताया था और हम अपने बच्चों को बताते आए हैं।

मुनस्यारी में होली गाने पर होती थी अनहोनी
मुनस्यारी के चौना, पापड़ी, मालूपाती, हरकोट, मल्ला घोरपट्टा, तल्ला घोरपट्टा, माणीटुंडी, पैकुटी, फाफा, वादनी सहित कई गांवों में होली नहीं मनाई जाती है। चौना के बुजुर्ग बताते हैं कि होल्यार देवी के प्रसिद्ध भराड़ी मंदिर में होली खेलने जा रहे थे। तब सांपों ने उनका रास्ता रोक दिया। इसके बाद जो भी होली का महंत बनता था या फिर होली गाता था तो उसके परिवार में कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती थी।
डीडीहाट में होली मनाने पर हुए अपशकुन
डीडीहाट के दूनकोट क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि अतीत में गांवों में होली मनाने पर कई प्रकार के अपशकुन हुए। पूर्वजों ने उन अपशकुनों को होली से जोड़कर देखा। तब से होली न मनाना परंपरा की तरह हो गया। यहां के ग्रामीण आसपास के गांवों में भी होली के त्योहार में शामिल तक नहीं होते हैं।

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