मकर संक्रान्ति : देव शक्तियां का जागरण काल
सुभाष चन्द्र नौटियाल
सनातन संस्कृति में समय की महत्ता पर जोर दिया गया है। प्रत्येक कार्य समयानुकूल हो इसके लिए सनातनी संस्कृति में विशेष नीति-रीति है। सनातनी संस्कृति में सौर गणित तथा चान्द्र गणित के अनुसार समय को परिभाषित किया गया है। सौर गणित के अनुसार पृथ्वी 365¼ दिन में सूर्य का एक चक्कर पूरा कर देती है। पृथ्वी की इस गति को परिभ्रमण कहा जाता है। इसे सौर वर्ष भी कहा जाता है। इसी प्रकार चन्द्रमा 354¼ दिन में सूर्य का एक चक्कर पूरा कर देता है इसे चान्द्र वर्ष भी कहा जाता है। चान्द्र गणित में शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष के अनुसार गणना की जाती है। चन्द्रमा लगभग 28 दिन में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा लेता है। जब चन्द्र घटते क्रम में होता है तो कृष्ण पक्ष कहा जाता है तथा इसी प्रकार जब चन्द्रमा बढ़ते क्रम होता है तो शुक्ल पक्ष कहा जाता है। जब चन्द्रमा घटते-घटते अदृश्य होता है तो अमावस्या कहा जाता है। इसी प्रकार जब चन्द्रमा बढ़ते क्रम में पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो उसे पूर्ण चन्द्र या पूर्णमासी कहा जाता है। इसी प्रकार सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेशकाल को संक्रान्ति या संक्रमण काल कहा जाता है। पृथ्वी की परिभ्रमण गति (वार्षिक गति ) के कारण ही ऋतु परिवर्तन सम्भव है जबकि पृथ्वी के अपने अक्ष या कक्ष पथ (परिधि ) पर भ्रमण से रात-दिन होते हैं। पृथ्वी की इस राशि को परिभ्रमण (दैनिक गति ) भी कहा जाता है। जहां पृथ्वी के परिक्रमण (दैनिक गति ) से रात-दिन सम्भव हैं वहीं परिभ्रमण (वार्षिक गति) से ऋतु परिवर्तन सम्भव है।
पृथ्वी के परिभ्रमण (वार्षिक गति ) में सूर्य की 12 राशियां होती है। एक राशि में एक माह तक परिभ्रमण काल होता है। इस प्रकार जब पृथ्वी 12 राशियों में परिभ्रमण पूरा कर लेती है तो वह सौर वर्ष पूर्ण हो जाता है। पृथ्वी के परिभ्रमण में सूर्य की स्थिति छः महीने उत्तरायण तथा छः माह दक्षिणायन होती है।
जब पृथ्वी दक्षिण से उत्तर की ओर अग्रसर होती है तो उत्तरायण कहा जाता है इसी प्रकार जब पृथ्वी उत्तर से दक्षिण की ओर अग्रसर होती है तो दक्षिणायन कहा जाता है।
वास्तव में पृथ्वी की उत्तरी गोलार्द्ध एवं दक्षिणी गोलार्द्ध की इन्हीं यात्राओं को उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है जो कि पृथ्वी की उत्पत्ति से निरन्तर अनन्त काल से अनन्तकाल तक जारी है।
सनातनी संस्कृति में देवताओं का वास उत्तरी ध्रुव पर माना जाता है तथा दक्षिणी ध्रुव पर असुरों का वास माना जाता है। चूंकि मकर राशि जो कि दसवीं राशि मानी जाती है तथा शनि देव इस राशि के स्वामी हैं जब सूर्य देव शनि की राशि में प्रवेश करते हैं तो उत्तरायण माना जाता है। यानि कि, जब सूर्य का उत्तरी गोलार्द्ध पर ऊर्जा और प्रकाश की तीव्रता बढ़ने की शुरूआत होने लगती है तो उत्तरायण होता है। सूर्य के प्रकाश की बढ़ी हुई इसी तीव्रता के कारण देव शक्तियां जाग्रत होती है तथा सृजनात्मक कार्यो के लिए प्रेरित होती है। देव शक्तियों के जागृत होने की खुशी में जो उत्सव मनाया जाता है उसे मकर संक्रान्ति (उत्तरायणी) आदि पर्वों के नाम से जाना जाता है। उत्तरायण काल में देव शक्तियांं का सम्वद्धर्न काल कहलाता है। जबकि दक्षिणायन में आसुरी शक्तियां प्रबल मानी जाती है। यह समय देव शक्तियों का संरक्षण काल कहलाता है।
सृजनात्मक शक्तियों के जागरण से धरती में सृजनात्मक कार्यों में बढ़ोत्तरी होती है जबकि आसुरी शक्तियों के उदय से विध्वंसक कार्यों में गतिशीलता आती है। आज समाज में विध्वंसक शक्तियां ज्यादा बलवती होकर समाज में आसुरी प्रवृत्तियों का निरन्तर विस्तार कर रही हैं। जबकि देव शक्तियां सुप्त अवस्था मे रहने के कारण प्रकृति का लगातार क्षरण हो रहा है। प्रकृति के इस क्षरण को रोकने के लिए आज आवश्यकता है कि हम अपने अन्दर की देव शक्तियों को जागृत करें। देव शक्तियों के इस जागरण काल में हम पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता का संरक्षण, जलवायु परिवर्तन पर चिन्तन कर एक बेहतर विश्व के लिए देव शक्तियों का संवद्धर्न कर सकते हैं वास्तव में यही मकर संक्रान्ति का संदेश है।